Wednesday, 27 September 2023

पिता की मेहनत की मिसाल (pita ki mehnat ki misal )

पिता ने अपना पसीना,
तेज धूप में बहाया है,
*       *        *        *         *



दिन को चैन ना था एक पल भी,
आँखों से नींद गायब थी रातों की,
तन पर कपड़े थे फटे उसके,
एक दर्द छुपा था उसकी बातों में,
सुख तो शायद बहुत दूर था पिता से,
बस एक दुख ने दामन थाम रखा था अपना,
हर कीमत पर हर हाल में,
मैं छू लूं इस ऊँचे आसमान को,
देखते थे दिन-रात बस एक ये ही सपना,
पिता को ईश्वर पर था बहुत भरोसा,
वो रखेंगे लाज हमारी,
कोई बेशक ना सुने पर,
एक दिन ईश्वर सुनेंगे आवाज हमारी,
मेरे दिल में छा जाता है सूकून,
जब भी पिता ने मेरे सर पर,
प्यार से हाथ फिराया है,
पिता ने अपना पसीना,
तेज धूप में बहाया है,
*      *        *       *         *
मैंने देखा है ‌पिता को,
हालातों की चक्की में पिसते हुए,
कहने‌ को तो हम से रिश्ते जुड़े हैं बहुत,
पर बुरे वक्त में सब झूठे रिश्ते हूए,
पिता कभी नहीं करते हैं,अपना दर्द बयां,
ना दिखाते हैं अपने पाँव के छाले,
वो फरिश्ता मुस्कराना तो जैसे भूल गया हो,
उसने अपने सब सुख किए हैं हमारे हवाले,
मैंने महसूस किया है ईश्वर को,पिता के रुप में,
मुझे ईश्वर के दर्शन होते है उसके स्वरूप में,
पता नहीं किस मिट्टी से बनाया है,
ईश्वर ने ऐसा इन्सान,
चाहे लाख दर्द हो बदन में ,
उसके चेहरे पर ना आए कभी थकान,
मेहनत बसी है उसकी रंग -रग में,
अपनी मेहनत से उसने मिट्टी से सोना उगाया है,
पिता ने अपना पसीना,
तेज धूप में बहाया है,
तब जाकर मेरे चेहरे पर ये नूर छाया है!
*      *         *         *         *
पिता बनकर रहता है सदा मेरा पहरेदार,
मैं बनकर रहुँगा सदा उसका कर्जदार,
उसके बेसुमार एहसानों का,
मैं कैसे चुकाऊंगा मोल,
जो हमारे लिए अपने दिल के दरवाजे,
सदा रखता है खोल,
मैं हर घड़ी रखुंगा पिता का ध्यान,
मैं हर सम्भव कोशिश करुंगा,
उसके चेहरे पर बिखरी रहे सदा मुस्कान,
हमारे लिए मेहनत करते-करते,
जिसका बीत गया जीवन सारा,
उसके बुढ़ापे के दिन बीतें सूख से,
ये फर्ज बनता है हमारा,
घर में आहट करते रहे उसके पाँव,
वो है हमारे सर की छाँव,
इसी छाँव के नीचे बीते जीवन सारा,
हाथ जोड़कर ईश्वर के आगे सर झूकाया है,
पिता ने अपना पसीना,
तेज धूप में बहाया है,
तब जाकर मेरे चेहरे पर ये नूर छाया है!
*      *        *        *        *        *




















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